कवि- शिव शंकर पाठक
(Sheo Shankar Pathak)
शिक्षक और कवि शिव शंकर पाठक द्वारा रचित यह सुंदर काव्य “प्रकृति की सुंदरता है बहुत निराली”। कवि शिव शंकर पाठक स्व शारदानंद पाठक के पुत्र हैं और वरिष्ठ पद्म भूषण सम्मानित कवि जानकी वल्लभ शास्त्री के परिवार से आते हैं।
प्रकृति की सुंदरता है बहुत निराली,
नदियाँ बहती हैं मतवाली।
ऊँचे पर्वत गहरी खाई,
पराए भी बन जाते हैं भाई।
काँटे तो करते ही हैं फूलों की रखवाली,
प्रकृति की सुंदरता है बहुत निराली॥
रंग बिरंगे मौसम आते,
अपने संग वे ख़ुशियाँ लाते।
बदल-बदलकर आते त्योहार,
बदल न जाए किसी का व्यवहार।
कभी दशहरा तो कभी दिवाली,
प्रकृति की सुंदरता है बहुत निराली॥
झर झर कर झरने गाते,
इतनी ख़ुशियाँ कहाँ हम पाते।
पक्षियों की कालरब गान,
पशुओं की अपनी शान।
फूलों से लदी है वृक्षों कि डाली,
प्रकृति की सुंदरता है बहुत निराली॥
सुख, दुःख, धूप और छाँव,
नदियों में जब चलते नाव।
चाँदनी रात में,
छोटे बड़े गाँव में।
खेतों में रहती हरियाली,
प्रकृति की सुंदरता है बहुत निराली॥
- शिव शंकर पाठक

