एक ऐसी कविता जो दर्शाती है की यदि क्रोध केवल भावना ना होकर मानव होता तो क्या कहता । मैंने 2021 में इसे काव्य पंक्तियों में पिरोया था।
– सुमित रंजन
अरे तू मुझको क्या मारेगा, मेरी जड़ें उखड़ेगा।
मुझसे तू है हार गया, जब संस्कार सभी नकार गया।
मैं तुझमें फूटा विस्फोट हूँ, तेरे मन का मैं खोट हूँ।
वीशामृत से उत्पन्न चिंगारी हूँ, मैं भयंकर बीमारी हूँ।
मैं क्रोध तेरा आचरण, मैं क्रोध तेरा हूँ पतन,
मैं क्रोध तेरा नियंत्रण, मैं क्रोध तेरा रूपांतरण।
मैं नाश हूँ, विनाश हूँ,
तेरी झूटि मैं आस हूँ।
मैं मृत्यु हूँ, मैं दंड हूँ, मैं पाप हूँ,
तांडव करता यमराज हूँ।
मैं घोर माया, घन घोर छाया।
मैं मोह लिप्त, मैं लोभ लिप्त।
मैं वयोग लिप्त, मैं भोग लिप्त।
देख भूमंडल है कांप रहा, मृत्यु कैसे है झांक रहा।
नभ – वक्श्स्थल है जल रहा, त्राही त्राही है बोल रहा।
तू मुझको ना बांध सका, ना तू मुझको है साध सका।
तूने खुद पर प्रहार किया, मेरा स्वरूप विस्तार किया।
देवता भी मुझसे काँपते हैं, देवता भी मुझसे काँपते हैं
मेरा विध्वंश वो जानते हैं। सूर में असुर, असुर में सूर,
द्वि गुण, द्वि काल, विकराल सकल मानते है।
अखंड ज्ञान ज्योति धारक, रावण भी मुझसे हार गया।
माया, ज्ञान, युद्ध कला का इंद्रजीत, मेघनाथ को मैं पछाड़ गया।
दुर्योधन भी मुझको जान गया, मेरी कृति है मान गया,
मेरा विध्वंस वो जानता है, मुझको अजयेय विनाश मानता है।
फिर मनु तुझको ऐसी क्या सूझी, जो तूने मेरा सृजन किया।
अरे मैं क्रोध हूँ, मैं काल हूँ,
मैं आस्तीन का नाग हूँ।
तू ध्यान कर, तू ज्ञान भर। तू अब हरी का नाम धर।
वरना तू मारा जायगा, तू रावण नहीं जो जाना जायगा। (रावण तो महापंडित, राम से उसका नाम है, लेकिन तुम तो आम जनमानस हो)
- सुमित रंजन